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बीता पिछला वर्ष |
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भला-बुरा जैसा भी बीता
बीता पिछला वर्ष
आने वाला लेकर आये
नित नूतन उत्कर्ष
यही कामना, यही प्रार्थना
एक यही उद्गार
जाति-धर्म-भाषा को लेकर
अब न छिड़े संघर्ष
बौनों की लम्बी छाया से
छिके न स्वर्णिम धूप
खरबूजे सा रंग देखकर
लोग न बदलें रूप
विषम परिस्थिति में भी अपना
खोये नहीं विवेक
पर दुख देख दुखी हो मन,
देख हर्ष, हो हर्ष
बस्ती में कानून जंगली
करे नहीं उत्पात
सुनी-अनसुनी रह न जाये
हीरामन की बात
छीन निवाला किसी के मुख का
भरे न कोई पेट
अपनी अपनी जेबों में हों
अपने अपने पर्स
- शैलेन्द्र शर्मा
१ जनवरी २०२२ |
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