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नववर्ष की नव अल्पना |
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नववर्ष की नव अल्पना में
तुम करो नव कल्पना
नव सुखद सपने सँजो लो
प्रीत के नव रंग घोलो
द्वार, आँगन, घर, गली में
तुम करो नव सर्जना
प्रेम के सब पत्र बाँचें,
अनवरत भर-भर कुलाँचें
नृत्य का सा हो समां
कोई न हो फिर वर्जना
जो गए पल, खो गए कल,
सामने अब खड़ा है कल
समझकर इसको कीमती
मित्र! खोना-ख़र्चना
कोई रूठे औ' न छूटे
छोड़िए सब दम्भ झूठे
है अशोभन बिना बरसे
गरजना ही गरजना
- राममूर्ति सिंह 'अधीर'
१ जनवरी २०२२ |
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