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नई आस का नूतन अंकुर |
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एक एक कर झरे शाख से
पत्र तीन सौ पेंसठ पूरे
नई आस का नूतन अंकुर
यहाँ प्रस्फुटित होने वाला
विगत वर्ष इतिहास हो गए
उनके पृष्ठ न खुलें जरा भी
घटित, पुनः दुहराया जाए
शेष न हों इच्छाएँ बाकी
पीछे मुड़ कर इस जीवन की
राहों पर अब नहीं देखना
मूँद चुकी है जो पलकों को
नहीं जगानी पुनः वेदना
अभिलाषा का नया सूर्य हो
नए वर्ष में उगने वाला
भोगी हुई पीर के पन्ने
मन पुस्तक से चलो हटा दें
जो अवशेष शेष सपनों के
उन सब का अस्तित्व मिटा दें
वातावरण स्वच्छ रखने का
नव संकल्प उठाएँ हम तुम
आरोगी हर जन गण मन हो
नई आस के फूटे विद्रुम
महाकाल के समय ग्रंथ का
नया पृष्ठ हो खुलने वाला
निश्चय की ले कलम हाथ में
लिखें स्वयं अपने आगत को
है हमको अधिकार, द्वार पर
किसे बुला लाएँ स्वागत को
क्या नकारना, क्या सँवारना
है इस पर अधिकार हमारा
किन रंगों की रच रंगोली
सजा रखें आँगन चौबारा
नया सूर्य इक, नवल चंद्रमा
यहाँ उदित अब होने वाला
- राकेश खंडेलवाल
१ जनवरी २०२२ |
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