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आया है साल नया |
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गाओ रे, वन पाखी!
आया है साल नया
हाथों में लेकर फिर खुशियों का
थाल नया
नींद से कुहासो की, सूरज फिर
जागा है
पोटली समेटे फिर "गया साल" भागा
है
बुनती हैं किरणे फिर रंगों का
जाल नया
भोर के पखेरू फिर डाल- डाल चहके
हैं
प्रीति की किताबों में फिर
गुलाब महके हैं
ठहरी इन लहरों में आ गया
उछाल नया
रंग नये सपनों के भरे हुए पाखों
में
धूप की चिरैया फिर फुदक रही
शाखों में
बाचती हवाये ये, मौसम का
हाल नया
उड़ती आशाओं की फिर नयी पतंगे
हैं
मचल रही अन्तर में चम्पई उमंगे
है
इच्छायें काढ़ रहीं रेशमी
रूमाल नया
संदली दिशाओं ने स्वस्ति मंत्र बाँचे हैं
अभिमन्त्रित शंखों ने लक्ष्य नये साधे हैं
गूँज उठा जीवन में फिर से
सुर-ताल नया
- मधु शुक्ला
१ जनवरी २०२२ |
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