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         नववर्ष सभी को मंगलमय!

 
पिछली यादें भी जीवित हैं
कैसे भूलें अपने संशय
आओ फिर भी मिलकर बोलें
नववर्ष सभी को मंगलमय !

कितने विश्वासों को हमने
मन की घाटी में छिपा दिया
फिर भी जीवंत
प्रेरणा ने
उठ चलने का उपकार किया
हम अवश रहें,
या विफल रहें
छू पाये नहीं महामारी
अपनी उद्दाम कामना का
हर स्रोत रहे सबमें अक्षय !

असहाय नहीं होने पाये
यह विश्व सभ्यता का आँगन
सुरभित हो और
पल्लवित हो
प्यारी धरती का हर उपवन
सौहार्द बढ़े
नीरोग रहें
अनुशासनबद्ध नागरिक हों
सबके मन में निर्बाध पलें
नैसर्गिक करुणा के आशय !

मानव-मानव में द्वेष न हो
अनुराग जगे, जग के उर में
समता साँसों
में लहराये
सद्-न्याय खिले हर अंकुर में
स्वर हों स्वतन्त्रता
के मुखरित
धरती के कोने-कोने में
भूगोल भूलकर गूँज उठे
हर संवेदन की अन्तर्लय !

हम बचें दम्भ से मिथ्या से
आने वाले संवत्सर में
आतंक भरा
आक्रोश न हो
धरती से लेकर अंबर में
आलिंगनबद्ध
हवाएँ हों
पूरब-पश्चिम तरुणाई की
उत्तर-दक्षिण का भेद न हो
कण-कण नाचे होकर निर्भय!

- जगदीश पंकज
१ जनवरी २०२२

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