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आहटें नये साल की |
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लो चला गया एक साल फिर, हुई
आहटें नए साल की
जो गुजर गया, वो गुजर गया, हैं मुबारकें नए साल की
गए साल जो न दिखीं कहीं, गए साल जो न हुई कहीं
वो शरारतें भी तलाशतीं, हैं सजावटें नए साल की
अभी सोचने ही लगे थे हम कि गया चलो वो बुरा बरस
और देखिये न हुई शुरू, वही हरकतें नए साल की
जो-न-भर-सकीं,-जो-न-मर-सकीं,-जो-न-कह-सके,-जो-न-कर-सके
वो गुज़र गईं गए साल में, नई हसरतें नए साल की
जो उड़ा रहा था मजाक में, गए साल की वो नसीहतें
वो चला गया है तमाम दे के हिदायतें नए साल की
किसी सूखती हुई डाल में जो उगें हरी सी दो कोपलें
वही आस बन के मिलीं मुझे मेरी चाहतें नए साल की
कभी सर्द रात में नाच के, कभी गर्म धूप को चूम के
हाँ कई दफा हाँ कई तरह, की खुशामदें नए साल की
है 'अमित' मुझे-यही-डर-बड़ा,-यूँ-ही-कुछ-दिनों-जो-चला-अगर
न जलालतों से हों रू-ब-रू ये रिवायतें नए साल की
- अमित खरे
१ जनवरी २०२२ |
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