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        नए साल में नया कलेंडर

 

नए साल में नया कलेंडर
टाँग लिया है खिल्ली पर

चौराहे पर भीड़ जुटी है
बिसराये पाँवों की भलभल
बंद मुट्ठियाँ तनी हुई हैं
सर्दाए सपनों में हलचल
देखो कोई असर गिरे जो
भोजपाल या दिल्ली पर

टूट चुका है अब सपनों का
यह सतरंगी सम्मोहक छल
दूर-दूर तक फैला है बस
अन्तहीन मरुथल या दलदल
कोई कब तक करे भरोसा
मुंगेरी या चिल्ली पर

जाग रहा है हर कोई अब
नहीं झपकता पल भर आँखें
घूम-घूम जाते अनगिन सिर
पंछी भी जो खोले पाँखें
छीका है हिल रहा हवा में
दृष्टि सभी की बिल्ली पर

- शशिकांत गीते
१ जनवरी २०२१

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