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        नववर्ष में

 

नव वर्ष में उम्मीदों को
पंख लगाना है
घटा विगत में उसे भूलकर
जोश जगाना है

आशा की किरणों को थोड़ा
मुट्ठी में भर लो
थके हुए कदमों की पीड़ा
किंचित तुम हर लो
मन को ऊर्जा के रंगों से
फिर छलकाना है
नव वर्ष में उम्मीदों को
पंख लगाना है

बीते बरस अमावस जैसी
लंबी थीं रातें
चलो साथ में मिलकर बाँटे
मंगल सौगातें
आज पनीली आँखों में फिर
सपन जगाना है
नव वर्ष में उम्मीदों को
पंख लगाना है

दसों दिशाएँ फिर से गूँजें
हर दिल फागुन हो
आँगन में मुस्कानों वाली
सुख की हर धुन हो
रोज उमंगों की बगिया में
जश्न मनाना है
नव वर्ष में उम्मीदों को
पंख लगाना है

-शशि पुरवार
१ जनवरी २०२१

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