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        यह साल अनूठा साल रहे

 

हे ईश विनय है ये तुमसे
यह साल अनूठा साल रहे

फिर से ना रोग बलाओं का
आघात फ़िज़ा पर गहरा हो
दीदार खुला हो दुनिया का
सांसों पे ज़रा न पहरा हो
हो लक्ष्य सभी को
हासिल अब
हर शख़्श सदा खुशहाल रहे

हर शाम दीवाली-सी आए
हर सुब्ह ईद निराली हो
सब चेह्रे हों खुशरंग सदा
मुस्काने भी मतवाली हो
ऊँचा कितना
हो जाएँ मगर
बदले का तनिक न ख्याल रहे

दंगा हो मजहब धर्म नहीं
बस मोल रहे मानवता का
सब भेद मिटाकर दुनिया को
दरगाह बनाएँ समता का
गुलशन-सा हो
जीवन अपना
खुश्बू जिसमें हर हाल रहे

- शंभु शरण मंडल
१ जनवरी २०२१

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