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आया
है फिर साल नया |
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आया है फिर
साल नया
कुछ बदला कुछ वही पुराना
क्या-क्या लिख दूँ हाल नया
आया है फिर
साल नया
जीवन अंधी दौड़ दौड़ता
मन ऊबा सा ठगा खड़ा
सब वैसे का वैसा दिखता
कुछ बिखरा कुछ सुघड़ जड़ा
रूप रंग सब वैसा ही पर
साथ लिए जंजाल नया
आया है फिर
साल नया
कुछ अपनों के लिये जिया
कुछ सपनों के भी लिये जिया
साल बीतते मास दिवस बन
पल भर भी कब चैन लिया
सपनों का संसार निराला
लिखता रोज़ सवाल नया
आया है फिर
साल नया
सतयुग, द्वापर, त्रेता बीते
अब कलयुग है शेष बचा
नया दिया, कुछ छीना देकर
हर युग ने इतिहास रचा
नया साल जाने कब लिख दे
जग माथे फिर काल नया
आया है फिर
साल नया
- सीमा हरि शर्मा
१ जनवरी २०२१ |
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