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       नये सूर्य का जन्म

 

गहन उदासी की कारा से
हृदय हमारा मुक्त हुआ है
प्रति बिंबों को गढ़ते गढ़ते
जैसे नवल प्रभात छुआ है
नये सूर्य का जन्म
हुआ है

बीत रहे हैं पहर पहर या
बरस महीने युग बीतें हैं
जीवन के ये विविध रंग हैं
राग रंग सुख दुःख देते हैं
आशीषों की नव धरती पर
फिर से तम का अंत
हुआ है

नव युग का है एक भरोसा
कितना भी अँधड़ गहराए
ज़िद्दी नव अंकुर ने फिर से
माटी के अंतर पिघलाए
जाग रही है मंगल बेला
शुभम शीघ्र अनुबंध
हुआ है

किसने कितना पिया हलाहल
किसने कितनी ठोकर खाई
मुड़ कर अब क्या देखें पीछे
नवल क्षितिज है नव अरुणाई
चलो चलो स्वागत वंदन है
मन मोहन का छंद
हुआ है

- डॉ. रंजना गुप्ता
१ जनवरी २०२१

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