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        नये वर्ष का नवगीत

 

कोहरे में भी धूप खिलाने
नया वर्ष आया
दुख के घर भी खुशी लुटाने
नया वर्ष आया

बहुत कठिन है आज जिन्दगी
फिर भी है जीना
सम्बन्धों के फटे वस्त्र को
फिर – फिर है सीना
हर घर की उलझन सुल्झाने
नया वर्ष आया

अपने भी हो गये पराये
कैसी हवा चली?
यहां प्यार की दूकानों में
नफरत घुटन मिली,
बन्दूकों को प्यार सिखाने
नया वर्ष आया

रूठ गयी जो गध प्यार की
उसे मना लेना
बिछुड गये जो दुख के साथी
उन्हें मना लेना
अरमानों की फसल खिलाने
नया वर्ष आया

- राधेश्याम बन्धु
१ जनवरी २०२१

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