|
नज़र उतार लें |
|
किरणें भोर
की लुकछिप रही अभी
नववर्ष देखो आ रहा उसको
पुकार लें
जाते साल की, यादें बुहार लें
छाया है जो मलिन सी
उसको उतार लें
हाँ बीता खौफ में, दर्द देता ये कई
पर ज़िंदा छोड़े जा रहा,
नज़र उतार लें
भारी से दिन थे कुछ,
कुछ सूने गुज़र गए
छोटी छोटी खुशियों में
पर अर्थ भर गए
जाना कहीं नहीं
राहें ही हैं मंजिल
हर पल का मोल है,
सबक बता गए
इस सबक को आओ
मन में उतार लें
पाना खोना तो
जीवन का नाम है
जो मिल गया उसे
मुट्ठी में भींच कर
जो छूटा हाथ से
उसको बिसार दें
हर रंग के फूलों का
जग है ये एक गुच्छा
कुछ दिन हैं इस जहां में
बस प्यार बाँट लें
कुछ हम रुके तो क्या
जगती निखर गई
चीर धुंध को
किरणें बिखर गईं
गर्द बहुत सा
हर ओर था जमा
धरती हुई रिसेट
उसको दुलार लें
नववर्ष देखो आ रहा
उसको पुकार लें
दुनिया के दुख से जब
हम डर के रह गए
कुछ और पास उस
परम् सत्ता के बह गए
नित उस का नाम ले
कर्मों पे ध्यान दें
चरणों मे रह प्रभु के
जीवन सँवार लें
नववर्ष देखो आ रहा
उसको पुकार लें
- भावना सक्सेना
१ जनवरी २०२१ |
|
|
|
|