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नये साल में |
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वही पुराना
छपका अब तक
और वही पगही
नये साल में भी तो होंगे
गाड़ीवान वही
भरोसे सबकी बाँचें बही
मँहगाई के हैं पौ बारे
कारिंदे उगलें अंगारे
गली गली सौदागर घूमें
बेचें बस मक्कारी नारे
राजा जी अब मौनव्रती हैं-
मुँह पर जमा दही
भरोसे सबकी बाँचें बही
चुन्नू मुन्नू की भी नानी
अबकी जीत गयी परधानी
नाना की तूती बोलेगी
महल बनेगा, छप्पर-छानी
अपनी वही बुतात-
कभी क्या उल्टी गंगा बही
भरोसे सबकी बाँचें बही
सदन हुये बाज़ार सरीखे
अपने ही कर्मों के लेखे
मन की बात, सुनें, समझें, फिर-
अच्छे दिन के सपने देखें
पान पान में भेद न कोई-
क्या बंगला मगही
भरोसे सबकी बाँचें बही
- अनिल कुमार वर्मा
१ जनवरी २०२१ |
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