रतनारी
सुबहें ले आये
रातें लायें धवल
अनघा खुशियाँ दामन में भर
आये साल नवल
भेदभाव हो जिसमें चित्रित
धुँधली कर तस्वीर
समरसता की विश्व पटल पर
खींचे बड़ी लकीर
दुर्भावों के दृश्य वतन में
डालें नहीं खलल
हर आँगन में
खिली रहे नित
अमलतास सी धूप
मेधा मुखरित हो ढह जायें
अवसादी स्तूप
जीवन झंझा वाम बहे जब
हों मस्तूल अटल
रहे आँच चूल्हों में,
खदके
अदहन घर -घर नित्य
रहा अँधेरा घना वहाँ भी
पहुँचे अब आदित्य
कंठ अभावों का न किंचित
लीले कहीं गरल
- अनामिका सिंह 'अना '
१ जनवरी २०२१