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आशाओं
के मनके |
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मिलने और
मिलाने के दिन
हाल-चाल बतियाने के दिन
लौटें हैं फिर
पिघल रहें घन नीरसता के
फूल खिलें हैं सुख मुक्ता के
सोख वेदना जीवन जल से
धूप ख़ुशी की पाने पल-छिन
लौटें हैं फिर
रहा विगत बहुत कठिन, पर
तना रहा उम्मीदों का छप्पर
हँसी-ख़ुशी, मौज और मस्ती
मौसम सभी सुहाने अनगिन
लौटें हैं फिर
आगत खड़ा , कहे अभिनंदन
नवल वर्ष है शत-शत वंदन
संकल्पों के धागे मनके
माला नयी पिरोने जन-गण
लौटें हैं फिर
पूरी हों सबकी आशाएँ
क्षितिज पार जाएँ बाधाएँ
मंगलमय हों कारज सारे
नव संचार जगाने तन-मन
लौटें हैं फिर
--आभा खरे
१ जनवरी २०२१ |
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