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गुल खिलाता क्या यहाँ
इक्कीस |
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कष्ट देकर
इस जहाँ को चल दिया है बीस ये
देखते हैं गुल खिलाता क्या यहाँ इक्कीस ये
जाने कितने घर हैं उजड़े, काम धंधे ठप्प हैं
किसलिए जग पर उतारी तूने अपनी रीस ये
ऐसा होगा, वैसा होगा, आने वाले साल में
दे रही सत्ता सभी को आज फिर तहरीस ये
कामना है हर मनुज खुशहाल हो नव वर्ष में
दूर तक़लीफें हों सबकी फिर न उट्ठे टीस ये
जैसे बाक़ी साल गुज़रे ये गुज़र ही जायेगा
आम लोगों की नज़र में है 'शरद' तलख़ीस ये
- शरद तैलंग
१ जनवरी २०२१ |
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