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        साल नया

 

कहाँ से लाए कोई रोज़ इक ख़याल नया
इसी फ़िराक़ में लो आ गया है साल नया

मलाल कम तो कहाँ थे गुज़िश्ता सालों के
ये साल दे के गया और इक मलाल नया

मेरे बग़ैर भी उस छत प धूप आयी थी
मेरे बग़ैर भी उसने मनाया साल नया

असीर कर के इसे हो गयी हूँ ख़ुद भी क़ैद
परिंदा ख़ुश है चलो मिल गया है जाल नया

तमाशबीन पुराने हैं इसलिए शायद
दिखा रहा है हमें वक़्त भी कमाल नया

- संजू शब्दिता
१ जनवरी २०२१

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