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        नये सर्द साल में

 

जुगनू कहीं से आ गये जैसे ख़्याल में
उम्मीदें जगमगाई नये सर्द साल में
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धीरज के साथ हौसला और फर्ज़ ओढ़कर
जलने लगे चिराग़, हवाओं के थाल में
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संकल्प जो लिये हैं नये साल में तो अब
अंगारे कम न हों कभी भी इस मशाल में
.
ऐ ताज़ा साल! तूं ये बीते से न पूछना
रक्खा था उसने कब किसे याँ कैसे हाल में
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ग़मग़ीन दिख रहा है जो गड्डा वबा के बाद
डिम्पल कभी खुशी का था चंदा के गाल में
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चिड़िया की चोंच टूटके तलवार हो गई
सैय्याद सोचता रहा, कमियाँ हैं जाल में
.
क्योंकर तलाशें ज़ीस्त का बाहर जवाब 'रीत'
दरवेशों ने कहा था कि हल है सवाल में।
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- परमजीत कौर 'रीत'
१ जनवरी २०२१

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