आने वाला साल
 

 

 

 

है चुनाव की तैयारी में
आने वाला साल

गठबंधन की राजनीति का
बिछा रहा है जाल
नये-नये मुद्दे उछालकर
ठोक रहा है ताल
सोच रहा है किसी तरह से
गल जाए बस दाल

उड़ा रहा है रोज हवा में
आकल्पित अनुमान
सही आँकड़ों का मन ही मन
सुखा रहा है धान
गोलमेज पर बिठा रहा है
हर शतरंजी चाल

हड़तालों की बागडोर ले
चली यूरिया खाद
अगड़े-पिछड़ों की बोली में
बोल रही बुनियाद
बना रहा है आरक्षण के
मुहरों की वह ढाल

कर्जा-माफी मंदिर-मस्जिद
जाति-पाँति का ढोल
आकर्षक नारों से पाटा
सड़क-सड़क का पोल
खाने वाला ‘होरी’ के घर
पहन जनेऊ थाल

नया साल देने वाला है
वादों का उपहार
वह चुनावचिह्नों से मत का
जोड़ रहा है तार
गाँव-गाँव में लोकसभा की
खोल रहा टकसाल

- शिवानन्द सिंह 'सहयोगी'     
१ जनवरी २०१९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter