समय नहीं बदला

 

 

 

नया साल आया है लेकिन
समय नहीं बदला

आँखों का माड़ा कब उतरे, कौन जानता है?
साठे के अनुभव को भी अब, कौन मानता है?
कुहराये मौसम का सूरज, है अपने हिस्से
कहने को नवयुग आया पर
हमको कहाँ फला

नये-नये ईश्वर हैं लेकिन, हैं तो वे पत्थर
हम बेबस इंसानों का है, एक नहीं ईश्वर
कलाकार बेशक़ बदले, पर एक चरित उनका
विश्वग्राम के ज़मींदार ये
अपना करें भला

अपराधों को मिली हुई, दुर्घटना की संज्ञा
संविधान के शीश चढ़ी है, मनुवाली सत्ता
धर्म-अँजी आँखों में तैरे, जन्मों का लेखा
कायरता के उच्छ्वास से
कब दुर्भाग्य टला

- राजेन्द्र वर्मा      
१ जनवरी २०१९

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