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नव वर्ष आ |
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ले आ नया हर्ष, नव वर्ष आ
आजा तू मुरली की तान लिये’ आ
अधरों पर मीठी मुस्कान लिये’ आ
विगत में जो आहत हुए, क्षत हुए
उन्हीं कंठ हृदयों में गान लिये आ
आकर अंधेरों में दीपक जला
मुरझाये मुखड़ों पर कलियाँ खिला
युगों से भटकती है विरहन बनी
मनुजता को फिर से मनुज से मिला
सुदामा की कुटिया महल में बदल
हर इक कैक्टस को कमल में बदल
मरोड़े गए शब्दों की सुन व्यथा
उन्हें गीत में और ग़ज़ल में बदल
कुछ पल तू अपने क़दम रोक ले
आने से पहले ज़रा सोच ले
ज़माने को तुमसे बहुत आस है
नदी को समंदर को भी प्यास है
नये वर्ष! हर मन को विश्वास दे
तोहफ़ा सभी को कोई ख़ास दे
जन जन प्रसन्नचित हो आठों प्रहर
भय भूख़ आतंक से मुक्त कर
स्वागत है आ, मुस्कुराता हुआ
संताप जग के मिटाता हुआ
- राजेन्द्र स्वर्णकार
१ जनवरी २०१९ |
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