नये साल के नये तराने

 

 

 

नये साल के नये तराने
रूठों को भी चलो मनाने
आँख भरी जो ख़ामोशी से
आज खुशी से उसे सजा लें

जीवन सूख रहा है क्यों ये
जीवन की बगिया महका लें
क्यों गुम है कुछ दोस्त हमारे
आओ उनकी पीर बँटा लें

टूट रहे क्यों सपन सुहाने
रेशम की डोरी से सिल लें
इस दिल से ले उस दिल तके
बंदनवार सजा लें,खिल लें

भूल सकें क्षण गर कसैले
इससे सुंदर बात न होगी
स्नेह परस्पर फैल सकेगा
आँसू की बरसात न होगी

- प्रणव भारती     
१ जनवरी २०१९

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