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आ गये फिर |
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आ गये फिर?
आ धमकते
हो यहाँ प्रतिवर्ष ही
यदि नहीं है
हाथ में कुछ, द्वार पर सोते रहोगे
रेत की नदिया उधारी में मरी थी, कह गई थी,
लौट आना है मुझे इस वर्ष के उपहार में ही
और बीते साल तो कुछ भूख से ही मर गए वो
प्राण भी थे लौटने नववर्ष के त्यौहार में ही
हाँ रखो, लाओ
दिखाओ आज क्या क्या ला सके हो,
या समय के
चक्र का ही बोझ बस ढोते रहोगे
हाँ नए हो,क्या करें कैसे सहेजें रख कहाँ लें ?
चाहते हो द्वार स्वागत में सजें पर ये बताओ
वय नई है सोच में परिपक्वता भी क्या कहीं है ?
ओ भले आगत जरा फुटपाथ के भी गीत गाओ
नव दिशा है
क्या, दशा किसकी बदलनी, जानते हो ?
या नया नवगीत
दावा ठोंक बस रोते रहोगे
जो सड़ी है साथ तेरे छप्परों की, साल बीते
छाज, अबकी रेशमी झोला भरे हो या नहीं तो
क्या भरे हो ठंड के साथी कुहासा शीत पाला
और घी भी पेट की बस आग सुलगाओ कहीं तो
जो मँगाया
था गया गतवर्ष लाए झुनझुना ही
या कि मौसम
की तरह आये गये होते रहोगे
- नीरज द्विवेदी
१ जनवरी २०१९ |
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