नये वर्ष का स्वागत

 

 

 

स्वागत करता नये वर्ष का
मन आशा का दीप लिये
उम्मीदों के अब तक कितने
जलते -बुझते रहे दिये

पृष्ठ एक बनकर अतीत का
हर नव वर्ष अस्त हो जाता
चिंताओं की नयी लकीरें
अनुभव के आखर दे जाता
पलटा करते हैं अक्सर हम
यादों का इतिहास पुराना
और सोचते बीते कल से
हमको था कितना कुछ पाना
बैठे हैं हम पछतावे के
ऐसे कितने दर्द पिये

नये वर्ष के द्वार खड़े हम
जाने क्या- क्या सोच रहे हैं
क्या भविष्य की बात करें जब
वर्तमान को कोश रहे हैं
क्या बोया जो कल काटेंगे?
शेष बचा क्या जो बाटेंगे?
फिर भी आशाओं के पौधे
बंजर मन में रोप रहे हैं
थामे हुए डोर सपनो की
यूँ ही हम जा रहे जिये
उम्मीदों के अब तक कितने
जलते -बुझते रहे दिये

- मधु शुक्ला
१ जनवरी २०१९

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter