.फिर नया उपहार
आया द्वार
खुशी के नव वस्त्र हैं
पैबंद जैसे.
लग रहे हैं छंद भी
छल छंद जैसे
हार ही आकर गले तक
लग रही है हार
फिर नया उपहार
आया द्वार
अधर पर मुस्कान
आँसू आँख में है
नये किसलय किन्तु
जीवन शाख में है
इसलिए आगत समय का
हर्ष युत सत्कार
फिर नया उपहार
आया द्वार
- पं. गिरिमोहन गुरु
१ जनवरी २०१९ |