उत्सव सा है चारों ओर
 

 

 

उत्सव सा है चारों ओर किस बात का
घट भरा है या उम्र का घट
बूँद बूँद कर रिस गया
बस एक़ साल और गुजर गया

घात लगा कर बैठा था
सवेरा मुंह जगे
शरद के कोहरे में लिपट कर ढ़ल गया
बस एक और साल गुजर गया

मुनिया कुछ बड़ी लगने लगी है
मामू की ख़ुशी फ़िक्र में बदलने लगी है
मुनिया के सपनों में
कोई स्वप्न बन जिल गया
बस एक और साल गुजर गया

शाख पर लगे बोग़नविला
रिझाने में लगे हैं
हाथो से चल कर गुलदानों में सजने लगे हैं
शराब शबाब एक नई फिज़ा में घुल रहा
बस एक और साल गुजर गया

अम्मा का चश्मा
फिर से धूमिल होने लगा है
किसनू भरमाने सा लगा है
अम्मा का हर पल इसी सोच में
मज़बूरी में ढल गया
बस एक और साल गुजर गया

वीराने जंगल में
पहाड़ों पर
ठंड में तम्बू की रात में
आँखों में दूरबीन लगाये
देश की हिफाजत में
जागते रहें हैं जो
उनकी आँखों में जश्न कब खिल गया

बस एक साल और गुज़र गया

आज तक
न किसी मुद्दे का हल मिला
ना हम दर्दी
बस वादे करते मुकरते
एक और साल गुजर गया
उम्र का घट भरा या रिस गया पता नहीं
बस इक साल और गुज़र गया

- मंजुल भटनागर    
१ जनवरी २०१९

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