अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अबकी सबकुछ
 
अबकी सचमुच
नया साल कुछ नया रहेगा
ऐसा लगता है

कथनी करनी जीभ चिढ़ाती
लड़ती भिड़ती ही देखीं थीं
अब तक हमने
रीढ़ बिना ही डगमग चलती
गिरती पड़ती ही देखीं थीं
अब तक हमने

किंतु चाल इस बार
ज़रा बदली लगती है
जो बोलेगा वही करेगा
ऐसा लगता है

डरा डरा सा कल का चेहरा
ज़रा ज़रा सा बदला बदला
सा दिखता है
‘शायद’ का घनघोर कुहासा
छँटता, सब कुछ उजला-उजला
सा दिखता है

रंग ढंग सब नए निराले
से दिखते हैं
नए नए दृष्टांत रचेगा
ऐसा लगता है

आवारा आधारहीन सी
आशा को आधार स्यात् इस
बरस मिलेगा
बंजारा सोचों के पाँवों
को भी कोई द्वार स्यात् इस
बरस मिलेगा

स्वस्ति कामनाओं में चंदन
महक रहा है
शुभ का हर इक वचन फलेगा
ऐसा लगता है

- सीमा अग्रवाल    
१ जनवरी २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter