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शुभ-कामनाएँ |
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फिर उमीदें, आस, चाहत,
और सपने गाँठ बाँधे,
खिलखिलाता आ गया दिन
बाँटने शुभ-कामनाएँ !
रात भर अवसाद भीगे
क्षण उनींदें कसमसाते
हिमकणों-से चुभ रहे थे
किंतु किससे बोल पाते
स्वर न हो अब कुंद
लेकर धूप में संवेदनाएँ
खिलखिलाता आ गया दिन
बाँटने शुभ-कामनाएँ !
देह पर लटका हुआ
कुर्ता उघड़ने से बचाना
एक धागे से दिखे लटका बटन
पर मत गिराना
देह-कुर्ते की तरह
हम हों, हमारी मान्यताएँ
खिलखिलाता आ गया दिन
बाँटने शुभ-कामनाएँ !
मानकों में नव्यता,
नव-दृष्टि को व्यापक समर्थन
इस तरह उपलब्धियों को
मिल सके आयाम नूतन
ताकि हों अभिव्यक्तियाँ सक्षम,
सुलभ हों व्यंजनाएँ
खिलखिलाता आ गया दिन
बाँटने शुभ-कामनाएँ !
- सौरभ पांडेय
१ जनवरी २०१८ |
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