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 एक नया उल्लास
 
नये साल तुम लेकर आना
एक नया उल्लास

सुबह गुनगुनी लाना ज्यों
बच्चों की नर्म हथेली
ऐसे मीठे रहना जैसे
ताज़े गुड़ की भेली
सबकी तरह नहीं रहना
तुम रहना थोड़े खास

हर भूखे को रोटी
सब हाथों को देना काम
सेब मँगाना जाड़ों में
गर्मी में लाना आम
निकल जाय जिसके भी मन में
चुभी हुई हो फाँस

नये लगे जो पेड़, फले हैं
उनमें बस अफ़वाह
तुम निकालना चुपके–चुपके
सच्चाई की राह
बहुत तेज मत चलना, लेना
धीरे धीरे साँस

– रविशंकर मिश्र “रवि”  
१ जनवरी २०१८

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