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चल दिया दिसम्बर मास
 
 
चल दिया दिसम्बर मास आज
लो, वर्ष हुआ नौ दो ग्यारह

कुछ आशाएँ फलवती हुईं
कुछ सपने ठेंगा दिखा गए
कुछ नाम जुड़ गए सूची में
कुछ नाम पुराने कटा गए
कुछ जग-प्रपञ्च को त्याग गए
कुछ करते रहे तीन तेरह

'मैं' लड़ता था मेरे 'मैं' से
'तुमने' 'उसने' तो प्यार दिया
'इसने' 'उसने जाने किसने
मेरे सपनों को मार दिया
यह अपराजेय समर जारी
चल रहा आजतक भी अहरह

आगया नए परिधान पहन
चौखट पर देता है दस्तक
यह नया वर्ष ही है देखो
ले आया सपनों की पुस्तक
कल जो होगा सो होगा ही
उल्लास अभी आता बह -बह

जो बीत गया मृत हुआ आज
फेंकें अब धूल अनागत पर
जो अतिथि खड़ा दरवाजे पर
दें ध्यान उसी के स्वागत पर
चेतना उमगकर नदी बनी
उठतीं उमंग-लहरें रह-रह

- रामसनेहीलाल शर्मा यायावर    
१ जनवरी २०१८

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