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नव वर्ष की नव अल्पना
 
 
नववर्ष की
नव अल्पना में
तुम करो नव कल्पना

नव सुखद सपने सँजो लो
प्रीत के नवरंग घोलो
द्वार, घर,
आँगन-गली में
तुम करो नव सर्जना

प्रेम का सब पत्र बाँचें
अनवरत भर-भर कुलाँचें
नृत्य जैसा
हो समाँ
कोई न हो फिर वर्जना

जो गए पल, खो गए कल
सामने अब खड़ा है कल
समझकर
इसको कीमती
मित्र ! खोना-खर्चना

कोई रूठे औ’ न छूटे
छोड़िए सब दंभ झूठे
है अशोभन,
बिना बरसे
गर्जना ही गर्जना

- राममूर्ति सिंह ‘अधीर’  
१ जनवरी २०१८

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