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खुशियाँ मनाएँ
 
 
भूल कर अवसाद सारे
प्रीत के पथ को सजाएँ

हर्ष के बादल घनेरे
व्योम पर छाने लगे हैं
गीत नूतन वर्ष के
सब लोग भी गाने लगे हैं

क्यों न दीपक आस के कुछ
मन की देहरी पर जलाएँ

दुःख का कोहरा भी छँटेगा
सुख के अब होंगे सबेरे
रश्मियाँ भी देंगी दस्तक
और खुशी डालेगी फेरे

आ गया नव वर्ष लेकर
ढेर सी संभावनाएँ

द्वार पर अनुभूतियों के
हर्ष और उत्कर्ष होंगे
और विगत के हर सवालों
के यहाँ निष्कर्ष होंगे

अब नए आकार लेंगी
कागजों पर कल्पनाएँ

वेदना के स्वर दबेंगे
चेतनाएँ होंगी विकसित
प्रार्थना स्वीकार होगी
मौन हो जाएँगे मुखरित

स्वप्न सब साकार होंगे
आओ हम खुशियाँ मनाएँ

- रमा प्रवीर वर्मा 
१ जनवरी २०१८

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