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आ गया नव वर्ष
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सुबह की पहली किरण ने
कुछ नये स्वर गुनगुनाएँ
आ गया नववर्ष फिर से
कुछ नये सपने जगे हैं
कुछ नये संकल्प भी हैं
जो मधुर रस में पगे हैं
करवटें लेने लगी हैं
फिर उनींदी कामनाएँ
खिले मन की कली सरसे
सुरभिमय वातावरण हो
दूर हों मन के कलुष
सद्भावना का स्फुरण हो
मधुर कोकिल की कुहुक से
बाग, वन, मन झूम जाएँ
दीप्त हो बेंदी, सुहागिन हो
धरा फिर फले फूले
मोदमय हो प्रकृति नव
उल्लास के झूले में झूले
अब न भेदों में बँटे मन
द्वेष की आँधी न आए
- मधु प्रधान
१ जनवरी २०१८ |
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