अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

देखे रहना
 
 
नये साल को
रोग पुराना लग ना पाये
देखे रहना

फर्क़ समझना
सच्ची सौं
कोरी लफ्फाजी में
मत उलझाना
मन को अपने
काबा, काशी में

भाईचारा
फिर अफवाहों में ना आये
देखे रहना

अम्मा दीदी
भैया जी नेता जी
बहिनी का
लेखा जोखा रखना
सबकी
कथनी-करनी का

चाय चाय में
कोई जुमला ठग ना जाये
देखे रहना

पार उतरना
अपनी करनी
मत औरों की राह निरखना
दीठ लगे ना
माथ देश के
सत्कर्मों का टीका रखना

अधिकारों की चाह
न अब कर्तव्य भुलाये
देखे रहना

भाव
परायेपन अपनेपन का तज
न्याय करे निरछल हो
जनगण के नायक को
जनगण हो वरीय पहले
फिर दल हो

कहीं न अलगू ही
जुम्मन के दोष छिपाये
देखे रहना।

- कृष्ण नन्दन मौर्य
१ जनवरी २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter