|
आ गया नव वर्ष
|
|
आ गया नव वर्ष, हम स्वागत
करें कुछ इस तरह
हर पुरानी पीर को सबसे प्रथम
कर दें विदा
धीर धरने का स्वयं से हो नया
इक वायदा
शौर्य-शर से काट, कर दें हर निराशा
का क़तल
कर्म-कर से उलझनों की गाँठ
सुलझाएँ सदा
हाथ अपने है नया सूरज उगाएँ
हर सुबह
रात मावस में अगर हो चंद्रमा
में दम नहीं
प्रण के पथ पर जुगनुओं की रोशनी
भी कम नहीं
साधने हर हाल में हैं साल-नव के
स्वप्न सब
काल से यदि हार जाएँ तो मनुष
हैं हम नहीं
एक नन्हाँ दीप हरता हर तरह की
तमस-तह
साल यह भी यों फिसल जाए
कहीं ऐसा न हो
चाल ऋतुओं की बदल जाए
कहीं ऐसा न हो
कल करेंगे वक्त है, यह बात
हम बुनते रहें
और नव-दिनमान ढल जाए
कहीं ऐसा न हो
ये न हो हम थे जहाँ, वापस खड़े हों
उस जगह
- कल्पना रामानी
१ जनवरी २०१८ |
|
|
|
|
|