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सुनो डाकिये
 
 
नए साल के सुनो डाकिये !
चिट्ठी लेकर आना
भूले बिसरे सपनों के
अधरों पर गीत सजाना

अभी खड़ी है
रात अंधेरी देह दिवस की काली
मटमैली है आँख साँझ की
पाँव लगी ना लाली

सुर को काँधे पर लादे
आलाप भोर का गाना

पिछले बरस भी
तुमने अच्छे दिन की बात कही थी
हर दोपहरी भरी पसीने
तकती राह रही थी

आस का अब विश्वास न टूटे
छड़ी परी की लाना

अभी प्रेम की
नींद खुली कब लेता है खर्राटे
हर आँगन के कान हैं बहरे
खड़ा देहरी बाँटे

दम साधे दीवारों को है
ग़ज़ल मीर की पाना

- गीता पंडित  
१ जनवरी २०१८

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