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 क्या नया नववर्ष में
 
क्या नया नव वर्ष में हमको मिला
हूबहू कल सा ही दिन था जो खिला

भोर बोझिल बदहवास सी मिली
धूप जैसी कल थी वैसी ही मिली
रात का आँचल भी तक़रीबन वही
पर नयी तारीख़ सबको थी मिली
सोचता हूँ क्यों रखूँ कोई गिला
क्या नया नव वर्ष में हमको मिला

इस तरफ़ तारीख़ बदली उस तरफ़
ज़िंदगी का एक दिन कम हो गया
कौन सी ख़ुशियाँ समय ने बाँट दीं
शोर जो इतना सुबह से हो गया
क्या नया सूरज कहीं पर है जला
क्या नया नव वर्ष है हमको मिला

भूख वैसी प्यास भी घटती नहीं
कश्मकश जद्दोजहद रुकती नहीं
तन पे कपड़ा क्या सभी को मिल गया
पेट की ये आग क्यों बुझती नहीं
रोटियों का ढेर क्या सबको मिला
क्या नया नव वर्ष में हमको मिला

- दिगंबर नसवा  
१ जनवरी २०१८

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