हैप्पी नू यर क्या है
चुनिया पूछ रही दउआ से
दउआ कहते क्या मालुम री
बड़े जनों के, बड़े चोचले
ऊपर-ऊपर ब्रांडिड दिखते,
भीतर-भीतर जियें खोखले।
मुड़ी खुपड़िया
लिये टाहपते
छले गए गउआ-से
हमें दाल-रोटी की चाहत
नहीं चाहते पूरी-भुर्ज़ी
तन को इक छन्ना मिल जाये
बस अपनी छोटी-सी अर्ज़ी
कंडे थाप रही
मजबूरी
दिवस लगें हउआ-से।
महरारुन की बदली चालें
रंग-ढँग पुरुषन के
नये बरस में हमें मिलेंगे
कुछ कपड़े उतरन के
पड़ा मिलेगा
कहीं सिपहिया
लड़-भिड़ कर पउआ-से
- भावना तिवारी
१ जनवरी २०१८ |