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आ गया नव वर्ष
 
आ गया नव वर्ष फिर से

फिर जगी है आस नूतन
है जगा विश्वास नूतन
बाँधकर सपनों की गठरी
आँख में है प्यास नूतन

त्यागकर ठिठुरन शिशिर की
जग रहा है हर्ष फिर से

तोड़कर अनुबंध गम से
रचें नव रचना कलम से
ज़िन्दगी की नाव डगमग
अब निकालें भंवर-भ्रम से

शब्द जो गूंगे हुए हैं
दो उन्हें उत्कर्ष फिर से

सच सदा सच ही रहेगा
तम मिटा है, तम मिटेगा
जब नया संकल्प लेकर
सूर्य प्राची में उगेगा

नव सृजन की नव सुबह में
सो नहीं आदर्श फिर से

- अमन चाँदपुरी      
१ जनवरी २०१८

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