अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नये साल में
 
 
मन उमंग हो
साथ-संग हो
लिखें आओ न हम सब
नयी रीत, नये साल में

हरियर डोरी आशाओं की
उम्मीदों के ललछौं मनके
गूँथ नवल सपनों की माला
भोर नवेली ने पग रक्खे

राग-बसंती
धुन सतरंगी
रचें आओ न हम सब
नये गीत, नये साल में

भेद तिमिर अशिक्षा का गहरा
चलो ज्ञान का दीप जलाएँ
सबकी थाली में रोटी हो
आओ ऐसी जुगत लगाएँ

सुबह सुनहरी
जीवन पथ की
गढ़े आओ न हमसब
नयी जीत, नये साल में

नवसंचित कलियों के जैसे
महके चहके हैं पल छिन
बाँह पसारे खड़े राह में
ख़ुशी सहेजे उत्सव से दिन

द्वेष भुला के
प्रेम भाव से
चुने आओ न हम सब
मीत-प्रीत, नये साल में

- आभा खरे    
१ जनवरी २०१८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter