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साल बेशक हो नया
 
आजकल के लोग कुछ ज़्यादा सयाने हो गए
साल बेशक हो नया पर हम पुराने हो गए

रौशनी बारूद की है,चार सू रंग-ए-क़फ़न
आदमी की ज़िन्दगी में कितने ख़ाने हो गए

इक बिखर जाता है, खींचें, ग़र सिरा हम दूसरा
क्या कहें दामन में अब इतने दहाने हो गए

हो गए खामोश, दुनिया के नज़ारे देख कर
लोग ये समझा किये के हम दिवाने हो गए

हमने जब दस्तार रख दी, मंज़िलों के छोर पे
बस फ़लक़ के साए में, अपने ठिकाने हो गए

हम अज़ल से ही रहे बस, इन्तेहाई सादा दिल
दह्र की अय आंधियों, हम क्यूँ निशाने हो गए

- उर्मिला माधव     
१ जनवरी २०१८

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