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विगत वर्ष को विदा किया
 
उम्र पिटारी धरी सहेजी
कुछ भूली कुछ याद किया
कुछ-कुछ बाँधी उसकी गठरी
विगत बरस को विदा किया।

आभारों की दी सौगातें
खुश रहना ताकीदें की
नित मेरी सुधियों में बसना
कस्में दीं व मुरादें कीं

रात-दिवस के संधि-काल में
शुभ मुहूर्त में विदा किया।

दुःख ने जब दहलीजें लाँघीं
धीर बँधाया साथ चले
पग-पग मिला तुम्हारा संबल
आँधी में यों दीप जले

समय सारथी, सजी सवारी
रोक न पाई विदा किया।

आगत का स्वागत ही करना
सीख तुम्हारी याद सदा
दुविधाओं के जंगल में तुम
मिलने आना यदा-कदा

देहरी पर दोनों ही ठिठके
गले लगाया विदा किया।
जाओ तुमको विदा किया।

- शशि पाधा      
१ जनवरी २०१७

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