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मना रहे हैं नया साल हम |
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मना रहे हैं
नया साल हम
परिवर्तन का पेड़ पुरातन
फूल रहा है हुलसित होकर
बदल गया है सब कुछ कितना
पूछ रहा है, आँखें धोकर
नहीं बदलना चहिये जिसको
लगा रहे हैं, उसमें भी दम
मना रहे हैं
नया साल हम
रोटी, कपड़ा बदल गया सब
चिट्ठी कब कोई लाता अब?
धनिया काकी बदल गयी है
उसे नहीं कोई भाता अब
साल, मास कुछ भी ना बदला
बदल गया है कितना मौसम
मना रहे हैं
नया साल हम
- पवन प्रताप सिंह 'पवन'
१ जनवरी २०१७ |
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