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चहकती चंचल चिरैया
 
तिमिर की
चादर हटा कर
खिल गई है सुबह
मीठे गीत गाये
चहकती चंचल चिरैया
चलो उड़ कर
आज फिर आकाश छूलें

कुहासे की परत पिघली
चाँदनी भी ढल गई है
बहुत रोई रात भर चकवी
पिया से मिल गई है

चोंच में कोहरा दबाये
उड़ रही चंचल चिरैया।
निशा ने कुछ-
कुछ सताया उसे भूलें

गुनगुनी सी धूप
मन सहला रही है
और हँस कर नव कली कुछ
कान में बतला रही है

सहजता विश्वास-धागे
बुन रही चंचल चिरैया।
चरमरातीं द्वार की
जो जमीं चूलें

- मधु प्रधान   
१ जनवरी २०१७

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