अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नव वर्ष
 
नयी बहू के जैसा कुछ-कुछ
होता हर नववर्ष

स्वागत आरत धूम-धड़ाका
तोरण मंगलगान
जिह्वा-जिह्वा शुभ से सज्जित
भिन्न-भिन्न पकवान

स्वप्न सहज ही पाने लगते
कई-कई उत्कर्ष

इसी तरह से चलते-चलते
ज्यों बीते मधुमास
रूप अपेक्षा का ले लेती
हिरदयवासी आस

वृद्ध यकायक दिखने लगता
कल का अबोध हर्ष

उत्तरार्ध के बाद न कहना
किसको पूछे कौन!

घिसते-पिसते निखरे-बिखरे
अपने में सब मौन

बचा बिताया कैसे जाये?
यही विचार-विमर्श

- कुमार गौरव अजीतेन्दु      
१ जनवरी २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter