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नव वर्ष का स्वागत
 
जो गया वो दर्द सारा भूल कर
फिर उम्मीदों को महकता फूल कर
नयी सुबह की बाँह में कुछ झूल कर
ला क़लम! नव वर्ष का स्वागत लिखें

फिर सफर की कर नयी तैयारियाँ
फड़फड़ा ले पर उड़ानों के लिये
फिर नयी शब्दावली को ढूँढ ले
कुछ नये जलते तरानों के लिये
आ सफर का दर्द थोड़ा कम करें
हमसफ़र का मर्ज़ थोड़ा कम करें
शहर को ख़ुदगर्ज़ थोड़ा कम करें
ये धरा आधार नभ को छत लिखें

आ नये कुछ रंग चित्रों में भरें
धूप कुछ फैली हथेली पर धरें
आ निराशा को नया रंग रूप दें
कुछ नयी आशा नवेली पर धरें
कुछ विफलतायें चहकती घूम लें
या नयी तैयारियों में झूम लें
आ, कि हम इस लेखनी को चूम लें
कुछ नये परिवर्तनों को ख़त लिखें

अब नये परिवर्तनों की बात कर
कुछ नयी उपलब्धियाँ सौग़ात कर
हैं जहाँ घर कालिमा की क़ैद में
कुछ जुगत कर चाँदनी की रात कर
आ गले मिल ले बुला ले गाँव को
दे तनिक विश्राम थकते पाँव को
धूप को आवाज़ दे तू छाँव को
आ समय अनुरूप पर आगत लिखें

- कृष्ण भारतीय      
१ जनवरी २०१७

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