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नया कैलेंडर |
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सुगम-काल की अगम-आस में
मैंने भी फिर उसी कील पर
नया कैलेंडर
टाँग दिया।
अच्छे दिन कर पार भँवर को
तिर जाएँ यह हो सकता है।
वही चखेगा फल मीठे जो
श्रम बीजों को बो सकता है।
तट पाने की चरम चाह में
मन नौका ने पाल तानकर
भरे जलधि को
लाँघ लिया।
दीप देखकर तूफां अपना
रुख बदले, यह नहीं असंभव।
घोर तिमिर से ही तो होता
बलशाली किरणों का उद्भव!
कर्म-ज्योति का कजरा रचकर
नैन बसाए कुंभकर्ण का
टूक-टूक सर्वांग
किया।
छोड़ विगत का गीत, स्वयं को
आगत राग प्रभात सुनाया।
सरगम के सातों सुर साधे
सुप्त हृदय का भाव जगाया।
चीर दुखों का कुटिल कुहासा
उगे फ़लक पर सूर्य सुखों-
का, नए वर्ष से
माँग लिया।
- कल्पना रामानी
१ जनवरी २०१७ |
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