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नये साल में
 
नयी बात तू
कह चाहे जितनी
दुनिया में बातें हों
तो बस मानवता जितनी।

फ़सलें पेड नदी नाले हों
हरे-भरे ससलिल
पशु-पक्षी के बीच अहिंसा
के हों मिलते दिल

संचय की
आज़ादी पूछे
आवश्यकता कितनी?

सूरज में गर्मी हो लेकिन
जले न कोई पग
धूल धुआँ आँधी से अब से
घिरे न कोई मग

धूप-धरा के
बीच सघनता
हो केवल उतनी।

उड़ने वाले डैनों में अब
नये हौंसले दे
रक्खे जो इतिहास बदल कर
कठिन फैसले ले

हारेगा
हर बुरा पैंतरा
बात रही इतनी।

- अशोक शर्मा 'कटेठिया'
१ जनवरी २०१७

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