अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

स्वागत कर लो
 
स्वागत कर लो आगे बढ़ कर
खड़ा द्वार पर है नव वर्ष
विचरेगा शुभ-शगुन संग ले
उर में भर देगा नव हर्ष

छल-प्रपंच औ' द्वेष भाव को
मिले नहीं कोई स्थान
वैसे भी क्या कम दिखते हैं
हर घर में विह्वल इन्सान?
लहरा सके न दुःख का सागर
बन अगस्त इसको पी जाएँ
खुशियों से जग रौशन कर दें
जीवन सब ऐसा जी जाएँ

आलस्य हटे अवसाद मिटे
शुभ हो जीवन का निष्कर्ष।

ले मशाल हम हरित क्रांति की
जग को यह सन्देश सुना दें
हरियाली से जग जगमग हो
हरा भरा परिवेश बना दें
लगे न सरिता अश्रु धार सी
लौटा दें मतवाली चाल
महक उठें फिर उपवन सारे
पवन बहे ले सुरभित माल

सावधान हो परहित पथ पर
पाएँ जीवन का उत्कर्ष।

चोरी डाका दंगा छोड़ें
नहीं कठिन है इनका त्याग
रचनात्मक हो सोच हमारी
दमकेंगे फिर अपने माथ
मर्यादा जग में लाने को
जिसने भोगा था वनवास
जनक दुलारी वन वन भटकीं
छोड़ सुखों का घर रनिवास

वही राम का पथ अपने भी
जीवन का होवे आदर्श।

- अनिल कुमार मिश्र 
१ जनवरी २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter